भक्त भगवान के पास पतित से पावन वनने की भावना पाता है: मुनिश्री 

हमारा जीवन प्रदर्शन की ओर चला जा रहा है 


asish malviya
अशोकनगर। भक्त जब भगवान के पास पहुँचता है तो भावना पाता है कि प्रभु आप तो पतित से पावन वन गये हम सब भी आपके समान कव वन पायें, यही प्रार्थना विनती करता रहता है, उक्त आशय के उद्गार सुभाष गंज में धर्मसभा को संबोधित करते मुनिश्री निर्वेगसागर जी महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिनका किसी से कोई लेना देना नहीं है उनके पास तिलतुस मात्र भी परिग्रह नहीं है वे अरिंहत भगवान हमारे जीवन को पतित से पावन वनने की प्रेरणा देते हैं। जमीन पर पडी माटी पतित से पावन वनने की यात्रा को पूरा करती हैं आचार्यश्री ने मूकमाटी महा काव्य में  इस यात्रा का वहुत ही अच्छे से वर्णन किया है।  
किसी काम को अच्छी तरह से करना है तो अपने हाथ से करो, वच्चों को जीवन हुनर सिखाओ, वच्चों में आज कामचोर पना आ रहा है, वच्चों को घर के सभी कामों में माहरथ होना चाहिए। हमने अपने घर पर तो कुछ सिखाया नहीं है फि र जव ये वडे हो जायेंगे तो हर कदम पर दिक्कत होगी इसलिए घर में ही वेटा -वेटियाँ सभी कामों में दक्षता हासिल करें।


वच्चों को स्वावलम्वी वनायें:-
वच्चों को संस्कार देने की ओर माता-पिता का ध्यान ही नहीं है आज हमने स्वावलम्वी पना छोड दिया इस कारण हमारा स्वास्थ्य विगड रहा है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें हर समय सक्रिय रहना चाहिए, सिर्फ पढाई से काम नहीं चलेगा। मुनिश्री ने कहा कि अच्छे लोगों के साथ में रहने से कुछ नहीं होता है उनकी अच्छाइयों को जीवन में लाओ अपनी कमीयों को सहज स्वीकार करो, हम अपनी कमीयों को सिर्फ  ढांकना चाहते हैं, स्वीकार कर सुधारना नहीं चाहते। हमें कमीयों को सुधारना होगा।


हमारा जीवन प्रदर्शन की ओर चला जा रहा है:-
उन्होंने कहा कि आज हमारा जीवन प्रदर्शन की ओर चला जा रहा है हम अपनी चादर से अधिक पांव पसार कर स्वयं दु:खी हो रहे हैं कहते हैं जितनी चादर है उतने ही पैर पसारना चाहिए, ये सुक्ति तो सभी को याद है लेकिन शिक्षा ग्रहण नहीं कर रहे। उन्होंने कहा कि संयम की राह चलें अपने आप जीवन वहुमूल्य वनेगा, राह शब्द स्वयं कहा रहा है कि संयम के मार्ग पर चलने वाले का जीवन हीरे के समान वन जायेगा।


क्रिया को विवेक से करने में फ ल मिलेगा:-
मुनिश्री प्रशांतसागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक महिला अपने चौके में गर्म पानी छान रहीं थीं उससे पूछा गर्म पानी क्यों छान रहीं हो, तो कहती हैं  कि गर्म करने के पहले नहीं छाना था। ये है आपकी क्रिया पालन जो भी क्रिया करे विवेक के साथ करे वर्ना कोई फ ायदा नहीं होगा। 
उन्होंने कहाकि जैसै लौकिक शिक्षा में कोई वायो, कोई मैथ, आर्ट विषय के माध्यम से उच्च शिक्षा लेता है वैसे ही आगम में चार अनुयोग कहे। समझने के लिए यहाँ वताया गया कि पहले तुम्हारा भाई गिरा था वह इतना नहीं रोया तुम कितने रो रहे ये प्रथमानुयोग सलाखा पुरूषों के जीवन को दिखा कर कथा कहानी के द्वारा वताया जाता है दुसरे जिनवाणी मॉ सिद्धांत के माध्यम से अपनी बात समझाती है। तीसरे अनुयोग जीवन में चरित्र के द्रारा धर्म की महती प्रभावना कर सकते हैं जैसे आपको किसी ने शादी भोजन के लिए वुलाया आपने वह पहुँचकर रात्रि में भोजन नहीं किया लोगों ने पूछा तो वताने से प्रभावना कर सकते हैं। वहीं द्रव्यानुयोग में आचार्य समझते हैं कि घोडाकुदा है तुने थोडी कुछ किया है। अर्थात तू करने धरने वाला कोई नहीं है ये धर्म को समझने के रास्ते भर है अब निर्णय आपको करना है अपनी शक्ति अनुसार कौन सा रास्ता चुनना है।