1200 किमी सफ़र करके घर पहुँचे सात नौजवान, जानिए उनकी कहानी 

तिरुवरुर, महाराष्ट्र में काम करने वाले तमिलनाडु के तिरुवरुर और नागपट्टनम ज़िलों के सात नौजवान 1200 किलोमीटर का सफ़र करके अपने घर पहुँचे.


इन नौजवानों में से एक राहुल द्रविड़ बताते हैं, "मैंने केमिस्ट्री में बीएससी किया है. मैं महाराष्ट्र के उमरखेड ज़िले की एक निजी कंपनी में बतौर सुपरवाइजर काम करता हूँ. 15 दिन पहले महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के संक्रमण का डर बहुत बढ़ गया तब मेरे इलाक़े की कंपनियों को बंद कर दिया गया और काम करने वालों का काम पर आने से मना कर दिया गया."
वो बताते हैं, "मैं 22 लोगों के साथ एक कमरे में रहता था. मेरे सामने वाले कमरे में 46 लोग रहते थे. इनमें 60 से ज़्यादा तमिलनाडु के ही हैं. महाराष्ट्र सरकार ने प्रवासी मज़दूरों के लिए कैम्प लगाना शुरू किया था और हमें वहीं रुकने को कहा गया था. लेकिन चूंकि हमें स्थानीय भाषा नहीं आती इसलिए हम पुलिस और और दूसरे अधिकारियों से बात करने में असमर्थ थे. इसके अलावा स्थानीय लोग हमें लगातार वापस अपने घर जाने की धमकी दे रहे थे. इसलिए हम कैम्प में नहीं रह सकते थे."
वो कहते हैं, "इन मसलों के अलावा एक बात यह भी थी महाराष्ट्र में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले सबसे ज़्यादा हो रहे थे. हम डरे भी हुए थे. इसलिए हमने घर लौटने का फ़ैसला किया."
राहुल आगे बताते हैं, "लॉकडाउन की वजह से ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं थी. इसलिए हम लोगों ने पैदल ही घर लौटने का फ़ैसला लिया. करीब 50 लोगों ने कैम्प से वापस पैदल लौटने का फ़ैसला लिया था लेकिन ज़्यादातर लोग इस बात को लेकर डर गए कि हमें कहीं पुलिस वाले गिरफ़्तार ना कर ले. इसलिए वो लोग कैम्प में ही रह गए."


किसी तरह से घर पहुँचना था
कोरोना और लॉकडाउन के दौर में मदद करने वाले हाथ
वो बताते हैं, "हमारा लक्ष्य घर पहुँचना था. पहले जब हम लोगों ने कैम्प छोड़ा तो नांदेड तक पहुँचना था, जो उमरखेड कैम्प से 240 किलोमीटर की दूरी पर था. वहां से हम सोलापुर पहुँचे. सेलम ज़िला के रास्ते हमने तमिलनाडु में प्रवेश किया और फिर त्रिची पहुँचे. ज़्यादातर समय हम पैदल चले, लेकिन बीच-बीच में कई गाड़ियों की सवारी भी की. कई बार हमने लोगों से लिफ़्ट भी लिया."
वो आगे बताते हैं, "पूरे रास्ते भर कई ज़िलों में पुलिस वाले और दूसरे अधिकारियों ने हमें रोका. उन्होंने हमें आसपास के रिलीफ़ कैम्प में ठहर जाने की सलाह दी. लेकिन हम घर पहुँचना चाहते थे. स्थानीय लोगों ने हमें तमिलनाडु में प्रवेश करने में हमारी मदद की. इस यात्रा के दौरान ज़्यादातर दुकानें और बाज़ार बंद मिले. समाजसेवी लोगों और सरकारी कैम्पों से मिलने वाले खाने से हम अपना पेट भरते हुए आए."
दो रात ही सो पाए
"कहीं-कहीं पर दुकानें खुली हुई थीं. इस दौरान हम ब्रेड और बिस्किट ख़रीद कर रख लेते और फिर चलना शुरू कर देते. हम पूरे सफ़र के दौरान सिर्फ दो रात ही सो पाए. बाक़ी दिनों में हम बिना सोए ही चलते रहे. पहले दिन हमें बड़ी थकान हुई थी. फिर हम अपनी ऊर्जा को बरकरार रखने के लिए हंसी-मज़ाक की बातें करते हुए चलने लगे. अब तो आश्चर्य हो रहा है कि कैसे हमने 1200 किलोमीटर का सफ़र तय कर लिया."
"हमने अपने माता-पिता को इसके बारे में नहीं बताया था. लॉकडाउन लगने के बाद से वो लोग काफ़ी चिंतित थे. इसलिए हमने उनके सामने हर रोज़ ये ज़ाहिर किया कि हम उमरखेड कैम्प में ही रुके हुए हैं. मोबाइल की बैट्री चार्ज करने को लेकर बड़ी समस्या होती थी. जब बैट्री डिस्चार्ज हो जाता था, तो हम किसी सड़क किनारे खड़े ट्रक में लगाकर अपनी मोबाइल की बैट्री चार्ज करते थे. इस तरह से हम दिन भर में एक बार अपने घर वालों से मोबाइल पर ज़रूर बात कर लिया करते थे और फिर मोबाइल ऑफ़ कर देते थे."
"कभी-कभी हमने कुछ जगहों को पार करने के लिए किसी का सहारा लिया. हमें किसी भी तरह से घर पहुँचना था. इसलिए हमने अपना सफ़र जारी रखा."
जब ये नौजवान त्रिची पहुँचे तब समाजसेवी अरुण ने ज़िलाधिकारी से मिल कर इनके बारे में बताया.
अरुण बताते हैं, "मैंने इन नौजवानों को अपना सामान सिर पर लिए कड़ी धूप में त्रिची-चेन्नई हाईवे पर बिल्कुल थके हुए हालत में पैदल चलते देखा. जब मैंने उनसे पूछा तो उन लोगों ने बताया कि वे महाराष्ट्र से त्रिची आ रहे हैं."
वो आगे बताते हैं, "उनकी बात सुनकर मुझे हाल ही में एक नौजवान की मौत की ख़बर याद आ गई, जिसकी महाराष्ट्र से तमिलनाडु पैदल आने के दौरान मौत हो गई थी. अगर ये लोग ऐसे ही चलते रहते तो बहुत हद तक इस बात की आशंका थी कि वे थकावट से बीमार पड़ जाते. इसलिए मैंने मीडिया के कुछ दोस्तों की मदद से ज़िलाधिकारी को उनके बारे में बताया."
अरुण बताते हैं, "हमें इन नौजवानों को उनके अपने-अपने घरों तक छोड़ने के लिए गाड़ी मिल गई. सबसे पहले मैं उन लोगों को जांच के लिए तिरुवरुर के सरकारी अस्पताल ले गया. उन सभी की कोरोना वायरस की रिपोर्ट निगेटिव थी. उन्हें अब उनके अपने-अपने घर पहुँचा दिया गया है."
          साभार बीबीसी हिंदी