प्रदेश में रेडीमेड गारमेंट्स कारोबार से जुड़े 10 लाख लोग बेरोजगार

-रमजान के लिए भी कारोबारियों ने तैयारी कर ली थी, पर सब ठप
भोपाल। कोरोना वायरस के संक्रमण ने मध्यप्रदेश में जिंदगियों के साथ मध्यप्रदेश के कपड़ा कारोाबार को भी निगल लिया है। रेडीमेड गारमेंटस कारोबारियों के सामने दिवालिया होने के हालात हैं, तो रेडीमेड उद्योग से जुड़ी फैक्ट्रियों के बंद होने से प्रदेश के 10 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं। कपड़ा उद्योग में कारोबार के लिहाज से शादी-विवाह का सीजन और रमजान का महीना खाली जा रहा है। साल के 10 माह का कारोबार इन 2 महीनों में हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार प्रदेश में करीब 225 करोड़ का नुकसान अब तक हो चुका है। कपड़ा उद्योग से जुड़े जानकार लोगों का कहना है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी इस व्यवसाय को खड़ा करने में 6 से 8 माह लग जाएंगे। हर साल कपड़ा व्यवसाय के लिए मार्च एवं अप्रैल कमाऊ महीने होते हैं। इन महीनों में शादियों का दौर चलता है। सूटिंग, सर्टिंग के अलावा साड़ी, रेडीमेड वस्त्रों की मांग बढ़ जाती है। कारोबारी इसकी तैयारी 6 माह पहले से ही कर लेते हैं। आॅर्डर पर माल तैयार करवाते हैं। बुकिंग लेकर एडवांस देने का काम पहले हो जाता है। रमजान माह के लिए भी कारोबारियों ने तैयारी कर ली थी। फैक्ट्रियों में आर्डर पहुंच गए थे। इस व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों को उम्मीद थी कि लॉकडाउन 14 अप्रैल को खुल जाएगा। इसके आगे बढ?े से या तो फैक्ट्रियों से ही माल नहीं निकल पाया या फिर तैयार ही नहीं हो पाया। कारोबारियों की मानें तो लॉकडाउन के चलते पूरा सीजन ही खराब हो गया।
सीजन बदलते ही ट्रेंड बदल जाता है 
गारमेंट सेक्टर रोजगार मुहैया कराने वाला बड़ा उद्योग माना जाता है। ऐसा माना जा रहा है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी सोशल डिस्टेंसिंग और स्वास्थ्य मापदंडों की वजह से रेडीमेड गारमेंटस कारोबार में आगे भी परेशानी बनी रहेगी। इस सेक्टर की खासियत यह भी है कि हर 6 महीने में फैशन के हिसाब से मांग बदलती रहती है। कारोबारियों के पास जो कपड़े रखे हैं, या जिनका आॅर्डर दिया हुआ है, उनका अब उठाव नहीं आएगा। सीजन बदलते ही वह डेड स्टॉक हो जाएगा। ऐसे में आर्थिक स्थिति और गड़बड़ा जाएगी। उल्लेखनीय है कि मप्र में भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन में रेडीमेड गारमेंटस का काम ज्यादा होता है।
दिवालिया होने के हालात
लॉक डाउन में कारोबार ठप होने से व्यापारी बैंकों का लोन (ईएमआई), दुकान का किराया, बिजली बिल और जीएसटी कैसे चुकाएंगे, यह बड़ा सवाल उनके सामने खड़ा हो गया है। क्योंकि पैसे की आवक-जावक पूरी तरह से बंद होने से कपड़ा व्यापारियों के सामने दिवालिया होने के हालात हैं। रेडीमेड होजयरी व्यापारी महासंघ के संयोजक राकेश अग्रवाल का कहना है कि सरकार ने यदि दवा, किराना की तरह कपड़ा उद्योग को भी परिवहन की अनुमति दी होती तो यह हालात निर्मित नहीं होते।