‘मिस्टर बंटाढार’ से कांग्रेस का किनारा

-अब खलने लगी सत्ता की बेदखली



भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस में आज भी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय से बड़ा नेता कोई नजर नहीं आता है। इसके बाद भी अब प्रदेश के संगठन ने उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया है। फिलहाल जिस तरह से बैठकों से उन्हें और उनके समर्थकों को दूर रखा जा रहा है, उससे तो यही लग रहा है। दरअसल संगठन पदाधिकारियों से लेकर कार्यकर्ताओं का मानना है कि प्रदेश की सत्ता से बाहर होने की बड़ी वजह दिग्विजय सिंह ही हैं। यही वजह है कि सत्ता से बाहर होने के बाद भी कांग्रेस में गुटबाजी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। बीते कुछ दिनों से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के साथ हुई संगठन की बैठकों में दिग्विजय सिंह व उनके समर्थकों को नहीं बुलाया जा रहा है। यह बात अलग है कि 25 अप्रैल को ग्वालियर व चंबल संभाग के तहत आने वाली विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों को लेकर हुई बैठक में जरुर दिग्विजय समर्थक डॉ. गोविंद सिंह को बुलाया गया था, लेकिन इस बैठक में भी दिग्विजय सिंह से दूरी बनाए रखी गई। खास बात यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद ग्वालियर-चंबल संभाग में सबसे अधिक कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह समर्थक हैं। इस अंचल के सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्तीफा के बाद ग्वालियर-चंबल में शेष रहे कांग्रेस विधायकों में भी अधिकांश दिग्विजय सिंह के समर्थक है। कोरोना समाप्त होते ही प्रदेश में उप चुनावों की घोषणा संभावित है। जिन चौबीस विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं उनके परिणाम प्रदेश सरकार का भविष्य तय करने वाले हैं। यदि इन हालातों में भी कांग्रेस में फैली गुटबाजी समाप्त नहीं होती तो भाजपा को टक्कर देना मुश्किल हो जाएगा। 
गुटबाजी मिटाने की कवायद
दरअसल चौबीस में से सोलह सीटों पर ग्वालियर-चंबल संभाग में उपचुनाव होने हैं। यह पहला मौका है जब कांग्रेस बगैर सिंधिया के पार्टी ग्वालियर-चंबल संभाग में चुनाव लड़ेगी। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के सभी छोटे-बड़े नेताओं में एकजुटता जरूरी है। सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद माना जा रहा था कि शायद अब कांग्रेस में गुटबाजी मिट जाएगी। इसकी वजह सरकार में प्रदेश के दोनों बड़े नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह में छोटे और बड़े भाई के संबंध रहे हैं, लेकिन सत्ता जाने के बाद शायद दोनों नेताओं के बीच अब संबंध उतने अच्छे नहीं रहे हैं। दरअसल कमलनाथ समर्थक सरकार जाने का ठीकरा दिग्विजय सिंह पर फोड़ रहे हैं, जबकि दिग्विजय सर्मथक सरकार में उनकी सुनवाई नहीं होने का आरोप लगा रहे हैं। खास बात यह है कि लंबे समय से दिग्विजय सिंह भी लंबे समय से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से मिलने उनके निवास पर नहीं गए हैं। 
कोर कमेटी का नहीं किया गया गठन
कहा तो यह भी जा रहा है कि गोंविद सिंह दिग्विजय सिंह समर्थक होने की वजह से ही अब तक नेता प्रतिपक्ष नहीं बन पाए हैं। जबकि डॉ. सिंह ग्वालियर-चंबल संभाग से ही आते हैं। सूत्रों की माने तो गुटबाजी रोकने के लिए ही प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ को बयान जारी करना पड़ा कि प्रदेश में उपचुनाव को लेकर अभी किसी कोर कमेटी का गठन नहीं किया गया है। इस संबंध में आ रही खबरें भ्रामक है। अभी कोरोना का जंग जीतना सभी की प्राथमिकता है। कमलनाथ ने कहा कि पहले हम सब मिलकर इस महामारी पर विजय पा लें, उसके बाद उप चुनाव को लेकर कोई निर्णय लेंगे। वैसे भी दिग्विजय सिंह को प्रदेश में भाजपा द्वारा बंटाढार नाम दिया जा चुका है।
अजय-अरूण भी अलग-थलग पड़े
केवल पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ही नहीं पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी इस समय हाशिए पर हैं। जबकि अरूण यादव पिछड़े वर्ग के बड़े नेता हैं और अजय सिंह के प्रदेश के सभी जिलों में समर्थक है। दोनों को प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी सौंपने से पार्टी को फायदा हो सकता है।
बाक्स
भाजपा ने सक्रिय किए संगठन मंत्री
इधर, मध्यप्रदेश में भले ही प्रदेश की शिवराज सरकार पूरी तरह से कोरोना संकट से मुकाबला कर रही है, लेकिन संगठन ने पूरा ध्यान उपुचनावों की तैयारी पर लगा रखा है। भाजपा संगठन दो दर्जन सीटों पर होने वाले उपचुनाव में से कम से कम डेढ़ दर्जन सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य तय कर चुकी है। उसका मानना है कि अगर वह कम से कम अठारह सीटों पर जीत हासिल कर लेती है, तो सरकार पूरी तरह से स्थिरता प्राप्त कर लेगी। देखने में भले ही उपचुनावों को लेकर पार्टी सक्रिय न दिखाई दे रही हो, लेकिन हकीकत यही है कि अंदर ही अंदर ठोस चुनावी तैयारी की जा रहीं है। संगठन स्तर पर प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा एवं प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत का पूरा फोकस उपचुनाव पर ही अधिक है। यही वजह है कि संगठन की ओर से ग्वालियर चंबल अंचल के संभागीय संगठन मंत्री शैलेंद्र बरुआ को अंसतुष्टों के बारे में रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंप दिया गया है। यही नहीं, उपचुनाव वाले इलाकों के अन्य क्षेत्रीय संगठन मंत्रियों के साथ ही दावेदार प्रत्याशियों को भी पूरी तरह से सक्रिय कर दिया गया है। इसके साथ ही विधानसभा क्षेत्रवार नेताओं की टीम भी गठित करने का काम शुरू कर दिया गया है। यही टीम अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव प्रबंधन का काम देखेगी।
बरुआ करेंगे असंतुष्टों की रिपोर्ट तैयार
भाजपा के संभागीय संगठन मंत्री शैलेंद्र बरुआ को उपुचनाव वाले इलाकों के असंतुष्ट भाजपा नेताओं के बारे में रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है। यह वे क्षेत्र हैं, जहां से कांग्रेस से आए बागियों का चुनाव लड़ना तय है। भाजपा की चिंता की वजह असंतुष्ट हैं। बरुआ ने अन्य संगठन मंत्रियों की मदद से क्षेत्रवार रिपोर्ट तैयार करने का काम भी शुरू कर दिया है। दरअसल पार्टी कां संगठन जयभान सिंह पवैया, रुस्तम सिंह, लाल सिंह आर्य जैसे नेताओं को लेकर आशंकित हैं। यह वे नेता हैं जो बागियों से हारे थे और अब उनके लिए ही काम करना कठिन होगा। इन्हें अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर भी चिंता है। बरुआ द्वारा तैयार रिपोर्ट के आधार पर असंतष्टों को संतुष्ट करने की दिशा में काम संगठन करेगा।
बागियों को भाजपाई बनाने की मुहिम
उपुचनाव के पहले भाजपा कांग्रेस से आए बागियों को पूरी तरह से पार्टी में ढालने के लिए एक अभियान शुरू करने जा रही है। इसके तहत पहले इन नेताओं को सदस्यता अभियान में लगाया जाएगा। हालांकि पूर्व कांग्रेस विधायक रह चुके हरदीप सिंह ढंग इस काम को पहले ही शुरू कर चुके थे, लेकिन कोरोना के कारण आलोचना हुई तो उन्हें इसे बंद करना पड़ गया। इसके साथ ही कुछ कांग्रेस से आए नेताओं को मंडल से लेकर जिला स्तर पर पदाधिकारी बनाने की भी योजना है। इसके बाद उन्हें आजीवन सदस्यता निधि से जोड़ने का काम दिया जाएगा। इस तरह भाजपा असंतुष्टों को मनाने और बागियों को भाजपाई बनाने का काम एक साथ करने की तैयारी कर रही है।
चुनाव प्रबंधन का काम करेगी पांच नेताओं की कमेटी
प्रदेश की भाजपा सरकार स्थिर और मजबूत हो, इसके लिए उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना जरूरी है। बागियों की सीटों की जवाबदारी वैसे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर ज्यादा होगी लेकिन भाजपा भितरघात न करें, इसलिए संगठन को भी ताकत झोंकना होगी। सफल ढंग से चुनाव प्रबंधन के लिए प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच-पांच नेताओं की कमेटी बनाई जाने वाली है। कमेटी में दो सदस्य बागियों के जबकि तीन भाजपा के होंगे। कमेटी का उद्देश्य दोनों पक्षों में संतुलन बनाकर बेहतर चुनाव प्रबंधन होगा। खबर है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद उपचुनावों की तैयारी की दिशा में और तेजी से काम शुरू हो जाएगा।