किसानों की फसल खरीदने की बनाए योजना
khemraj mourya
शिवपुरी। कोरोना महामारी के संकट के इस दौर में समाज का कोई भी वर्ग इससे अछूता नहीं है। लेकिन अन्नदाता किसान की हालत सबसे अधिक खराब है। रबी की फसल उसके खेतों में पड़ी है और सरकार ने अभी तक उसकी फसल की खरीद की कोई योजना नहीं बनाई है। जिससे अर्थाभाव से जूझ रहा किसान एक ओर जहां भुखमरी की हालत में पहुंच गया है। वहीं इससे प्रदेश में खाद्य सामग्री का संकट गहराने की आशंका भी उत्पन्न हो गई है।
हमारे प्रदेश में मुख्य रूप से रबी की तीन जिन्स हैं। सरसों, गेहूं एवं चना की पैदावार होती है। किसानों की फसल तैयार है। लेकिन वर्तमान हालात में कृषि उपज मंडी को शुरू करना संभव नहीं है। ऐसे में सरकार को ऐसी योजना बनानी चाहिए जिससे किसान संकट के इस दौर से उभर सके। किसानों और जनता के हित में प्रदेश सरकार को चहिए कि वह फसल का उचित मूल्य निर्धारित कर गेहूं की खरीद के लिए आटामिल, चना के लिए दालमिल एवं सरसों के लिए तेलमिल को अधिकृत करें साथ ही खरीद के भाव एवं क्वालिटी का मानक भी निर्धारित कर दें। आमजन को शोषण से बचाने हेतु प्रोसेसिंग प्लांट को भी माल बेचने हेतु भाव निर्धारित कर दिए जाएं। प्लांट मालिकों को यह भी निर्देश दिए जाए कि वह इस खरीद के द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष ध्यान रखें।
गेहूं 1825 में खरीदें और आटा 2225 में बेचें
किसान को समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेचने के लिए व्यय करना पड़ता है। यदि वह सीधा मिल पर 1825 रूपए प्रति क्विंटल में गेहूं बेचता है तो उसे कोई हानि नहीं होती। मिल वालों को भी ट्रांसपोर्ट की स्वीकृति प्राप्त है। उससे वह सीधे खेत से भी उपज खरीद सकते हैं। ऐसी स्थिति में 25 रूपए प्रति क्विंटल का व्यय किसानों द्वारा प्लांट मालिकों को दिया जाना चाहिए। प्लांट मालिका को यह भी हिदायत दी जाए कि वह 1825 रूपए प्रति क्विंटल में गेहूं खरीदकर आटा 2225 रूपए प्रति क्विंटल से अधिक कीमत में नहीं बेचे।
चना 4000 में खरीदं और बेसन 5500 रूपए क्विंटल में बेचे
सरकार को ऐसी संकटपूर्ण स्थिति में किसानों के लिए चने का समर्थन मूल्य 4 हजार रूपए प्रति क्विंटल खरीद कर देना चाहिए और प्लांट मालिक इससे कम मूल्य पर किसानों का चना नहीं खरीदें। वहीं प्लांट मालिकों को यह भी हिदायत दी जानी चाहिए कि वह दाल 5 हजार रूपए क्विंटल और बेसन 5500 रूपए प्रति क्वंटल से अधिक कीमत पर न बेचें। सरसों का उचित समर्थन मूल्य भी प्रति क्वंटल भी प्रदेश सरकार को निर्धारित करना चाहिए। अभी उचित मूल्य निर्धारित न होने से बिचौलिए किसान से 1500 से 1600 प्रति क्वंटल में गेहूं खरीद रहे हैं और उसे मिल मालिकों को 1800 से 1900 रूपए प्रति क्वंटल में बेच रहे हैं। जिससे किसान शोषण का शिकार हो रहे हैं।
मंडी शुल्क माफ किया जाए
सरकार को यह भी चाहिए कि वह किसानों और आमजन की सुविधा हेतु मंडी शुल्क को माफ करने की घेोषणा करनी चाहिए। जिससे खाद्य सामग्री की कालाबाजारी रूक सकेगी। क्योंकि वर्तमान दौर में अन्य सुविधाओं और सेवाओं का मूल्य जैसे मजदूरी आदि काफी बढ़ गई है। इससे निजात दिलाने के लिए मंडी शुल्क माफ करना अतिआवश्यक है।
संकट के इस दौर में अन्नदाताओं की मदद के लिए आगे आए प्रदेश सरकार