शक्ति परीक्षण को लेकर गर्माई सियासत, भाजपा देगी चुनौती

भोपाल, बीते दिनों विधानसभा में हुए शक्ति परीक्षण को लेकर प्रदेश में सियासी पारा उछाल पर है। सत्तापक्ष में जहां मजबूती देखने को मिल रही है, वही विपक्ष में उथल-पुथल मची हुई है। विधायकों के यूं क्रास वोटिंग पर बीजेपी में हलचल तेज हो गई है। इसी के चलते बीजेपी फिर से कांग्रेस को चुनौती देने की तैयारी कर रही है। बीजेपी  संशोधन विधेयक पर अचानक हुए मत विभाजन को लेकर सरकार को चुनौती देने की तैयारी में है। इसके लिए पहले वह राज्यपाल लालजी टंडन और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष से भी चर्चा करेगी।


 नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव  का कहना है कि   बहुमत ही साबित करना था तो कर्नाटक विधानसभा की तर्ज पर भौतिक रूप से गणना की जानी चाहिए थी।  भाजपा ने तो मत विभाजन मांगा भी नहीं था बल्कि विधेयक का समर्थन किया था। यही कारण है कि भाजपा ने अपने सदस्यों के लिए व्हिप भी जारी नहीं किया था।उन्होंने बताया कि हम इस संबंध में संविधान विशेषज्ञों से राय-मशविरा कर रहे हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा को इस मामले में अध्ययन कर उचित फोरम पर चर्चा करने की जवाबदारी सौंपी गई है। डॉ.शर्मा भी इस पूरी कार्रवाई को विधानसभा के फ्लोर का दुरुपयोग मानते हैं।


इसके पहले भार्गव ने कहा था कि हमें पता चला है कि बुधवार शाम को दंड विधि (मध्य प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2019 पर मत विभाजन के दौरान सदन में कांग्रेस के करीब आठ से 12 विधायक मौजूद नहीं थे, लेकिन उन्होंने भी इस मतदान में भाग लिया था। हमें संदेह है कि कांग्रेस के इन विधायकों के हस्ताक्षर फर्जी हैं। इसके अलावा, मत विभाजन की प्रक्रिया का वीडियो भी नहीं बनाया गया है।भार्गव ने कहा अभी हम संविधान द्वारा प्रदत्त राज्यपाल की शक्तियों का अध्ययन कर रहे हैं और इसके बाद राज्यपाल से शिकायत कर अनुरोध करेंगे कि कांग्रेस के उन विधायकों के हस्ताक्षरों को सत्यापित करवाएं, जिन्होंने सदन में बिना मौजूदगी के मत विभाजन में हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने सवाल किया कि जब कांग्रेस के आठ से 12 विधायक सदन में मौजूद नहीं थे, तो कांग्रेस को 122 मत कैसे मिले?


मालूम हो कि मध्यप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के कुल 114 विधायक हैं और चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा विधायक ने कांग्रेस सरकार को समर्थन दिया है। इस प्रकार कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेसनीत सरकार के पास 121 विधायकों का समर्थन है। इस विधेयक पर विधानसभा अध्यक्ष ने मतदान नहीं किया था। इस प्रकार कांग्रेस के पास कुल 120 वोट हुए। इनके अलावा, इस विधेयक पर भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल ने अपना समर्थन सत्तारूढ़ पक्ष में किया था।