16 विधायकों की आनाकानी से ही तय हो गई थी तस्वीर

कमलनाथ ने अपने अनुभव के हिसाब से मन बना लिया था


आनंद शुक्ल,


भोपाल। मप्र में सत्ता के बचाने और गिराने का खेल आखिरकार शुक्रवार की दोपहर में सीएम के इस्तीफे के साथ ही थम गया। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कि फ्लोर टेस्ट शीघ्र कराया जाए से ही सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई थी। कांग्रेस के आंतरिक मैनेजमेंट का काम देख रहे रणनीतिकारों को इस बात का आभास उस वक्त हो गया था जब पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह बैंगलुरू गए और सोलह विधायकों ने उनसे मिलने से मना कर दिया। इसके बाद भी श्री सिंह तमाम कोशिशों में लगे रहे। उनका मार्मिक पत्र भी इस सियासी नाराजगी को पिघलाने में कामयाब नहीं हुआ।
 बताते हैं कि बैंगलुरू से गुरूवार की रात में दिग्विजय सिंह वापस आ गए थे और उनके आने के बाद से ही इस बात पर मंथन हुआ कि सरकार फ्लोर टेस्ट में जाए या नहीं। बताते हैं कि सीएम नाथ विधायकों को भले ही मनोबल बढ़ा रहे थे लेकिन अंदरूनी तौर पर उन्होंने मन बना लिया था कि अब वे इस्तीफा ही देंगे। उधर दिग्विजय सिंह शुक्रवार की सुबह मीडिया में इस बात का संकेत दे दिए थे कि जरूरी आंकड़ा नहीं होने पर नाथ सरकार को पद त्याग देना चाहिए। फिर क्या था तस्वीर स्पष्ट होगई थी।


 सरकार के त्यागपत्र से लोधी के निकले आंसू :
 हालांकि सरकार बचाने की हर संभव कोशिश और संभावनाआें पर आखिरी क्षण तक विचार हुआ । इसके बाद भी अपने निवास पर जब सीएम नाथ ने मीडिया के सामने अपने इस्तीफे की घोषणा की तो बड़ा मलहरा के पार्टी विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी अपने आंसू नहीं रोक पाए। आंसू पोछते वे कैमरे में कैद भी हुए।
 पीसीसी पर पसरा सन्नाटा:
 सुबह से ही इस बात की भनक पार्टी कार्यालय को लग गई थी। यही कारण है कि पार्टी कार्यालय पर सन्नाटा पसरा रहा। कोई प्रवक्ता कार्यालय पर नहीं रहा । एक बात जरूर रही कि सभी पदाधिकारी सीएम नाथ के सामने सीएम हाउस में जरूर मौजूद रहे।
 निर्दलियों ने बदले सुर :
 प्रदेश की कांग्रेस सरकार में सबसे अहम भूमिका निभा रहे चार निर्दलीय और तीन अन्य पार्टी विधायकों के रूख में पहले से ही बदलाव दिख गया था। कांग्रेस के पक्ष में नारेबाजी करने वाले शेरा और बसपा विधायक रामबाई भी मौके से नदारद रही। कमोवेश यही हाल अन्य विधायकों का भी रहा।
 भाजपा में सेंध नही लगा पाई कांग्रेस:
 कांग्रेस के मंत्री और विधायक बहुत पहले से ही आगे बढ़कर बयान दे रहे थे किंतु मौके पर किसी की रणनीति काम नहीं आयी। एक विधायक भी नहीं तोड़ पाए। सब के सब यही कह रहे थे कि छह विधायक हमारी मुटठी में हैं जबकि यह बात हकीकत से कोसों दूर थी।
 
 राजा पर भारी पड़े महाराजा :
 प्रदेश में कांग्रेस के दो बड़े गुट राजा और महाराजा का अंदरूनी संषर्ष सर्वविदित है। इसके बाद भी इस बात महाराजा का दांव राजा पर भारी पड़ा। किसी को भनक लगने से पहले महाराजा ने अपने खास विधायकों को इशारा देकर प्रदेश से बाहर शिफ्ट करने में सफल हो गए। कहा यही जा रहा है कि समय पर महाराजा से बातचीत नहीं करना पार्टी और सरकार पर भारी पड़ा। मिली जानकारी के अनुसार पोहरी विधायक के पी सिंह कक्काजू ने भी आखिरी समय में पार्टी से दूरी बना ली थी। वरिष्ठ होने के कारण उन्हें सरकार में स्थान नहीं मिलने से खासे नाराज बताए जा रहे थे।
 उपचुनावों पर निर्भर कांग्रेस का भविष्य:
 कमजोर रणनीति के कारण पंद्रह महीने में ही प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो गई कांग्रेस का भविष्य अब उपचुनावों पर निर्भर करेगा। बता दें कि राज्य में मौजूदा स्थिति में कुल 25 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। कांग्रेस को अब इन्ही सीटों में जीत के सहारे अपना भविष्य दिख रहा है। हालांकि ताजा हालात पर गौर करें तो किसान कर्जमाफी में देरी और युवाओं को मिलने वाले भत्ते की अनिश्चितता, आर्थिक हालातो में राज्य का कमजोर होना तथा सरकार का जनता से सीधा संवाद ना होना आदि ऐसी स्थितियां हैं जिसका नुकशान उसे आने वाले चुनावों में भी उठाना पड़ सकता है। उधर भाजपा अपने सांगठनिक दम पर निकाय चुनावों और पंचायती चुनाव के माध्यम से प्रदेश में अपनी सियासी जमीन को एक बार फिर खड़ा करने की तैयारी में है। इसमें कोई राय नहीं।