भाजपा में जाने से सिंधिया को नफा या नुकसान ?

भोपाल: कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक रंग बदल गए हैं। सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और अब वे बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। सिंधिया के इस्तीफे के बाद 22 कांग्रेस विधायकों ने भी पार्टी से किनारा कर लिया है। एक तरफ जहां कमलनाथ सरकार पर खतरा मंडरा रहा है, तो वहीं बीजेपी सरकार बनाने के लिए कदम आगे बढ़ाती दिखाई दे रही है। इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस पार्टी में कई अहम पदों पर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को आखिर बीजेपी में जाकर क्या मिलेगा?



घोषित हो सकते हैं राज्यसभा उम्मीदवार! 
खबरों के मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी राज्यसभा का उम्मीदवार घोषित कर सकती है। अगर सिंधिया बीजेपी के उम्मीदवार बनते हैं तो उनका राज्यसभा पहुंचना लगभग तय है। इसके अलावा सिंधिया को मोदी कैबिनेट में भी जगह मिल सकती है। खबरों की मानें तो सिंधिया की जमीनी पकड़ को देखते हुए उन्हें संगठन में भी कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है। सूत्रों ने बताया कि सिंधिया 12 मार्च को अपने समर्थकों और कांग्रेस के कई विधायकों के साथ बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। सूत्रों ने यह भी बताया कि बीजेपी में शामिल होने से पहले सिंधिया ग्वालियर में अपने समर्थकों को संबोधित कर सकते हैं।


कांग्रेस से क्या थी नाराजगी
ज्योतिरादित्य सिंधिया गांधी परिवार और ख़ासतौर पर राहुल गांधी के बहुत नज़दीकी माने जाते थे। कई युवा नेता तो यह भी बताते रहे कि जो बात सिंधिया राहुल गांधी को बोल सकते हैं वो कोई नहीं बोल सकता यानी राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जो कॉलेज के समय की दोस्ती थी वो राजनीति में आने के बाद भी कम नहीं हुई, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐसा क्या हुआ कि गांधी परिवार भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को रोक नहीं पाया ?


दरअसल, इसकी कहानी शुरू होती है मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले जब मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान किसी नेता को देनी थी। उस वक्त राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष थे और पार्टी अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की बैठक बुलाई थी। राहुल गांधी ने दिग्विजय से पूछा आपकी क्या राय है ? किसे राज्य की कमान मिलनी चाहिए। तब दिग्विजय सिंह ने कहा था सिंधिया हमारे आदरणीय नेता हैं, लेकिन कमलनाथ की यह आखिरी पारी है इसलिए कमलनाथ को मध्यप्रदेश की कमान सौंपी जाए और उसके बाद कमलनाथ को ही राज्य जिम्मेदारी दी गई।
फिर दूसरी बड़ी घटना हुई जिसने ज्योतिरादित्य सिंधिया को फिर एक झटका दिया वो थी जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का फैसला होना था। मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के बाद मुख्यमंत्री पद कमलनाथ को ही मिला हालांकि राजस्थान की तर्ज पर सिंधिया को भी उप-मुख्यमंत्री का पद कांग्रेस ने आफर किया था, लेकिन महाराज भला वजीर कैसे बन सकते थे।


लेकिन मामला इतना बढ़ जाएगा कि वो कांग्रेस पार्टी को छोड़ने का ही फैसला कर लेंगे इसकी शुरूआत हुई जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा , मैं मध्यप्रदेश की जनता के लिए सड़क पर उतरूंगा तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने साफ शब्दों में कहा "उतरना है तो उतर जाएं।" शायद सिंधिया को कमलनाथ से ऐसे से जवाब की उम्मीद नहीं थी और उसके बाद फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी छोड़ने का मन बना लिया था, लेकिन सिंधिया इस बात को पुख्ता करना चाहते थे कि अगर वो कांग्रेस पार्टी छोड़ते हैं तो मध्य प्रदेश की सरकार भी नहीं रहनी चाहिए और जिस तरीके से कांग्रेस के विधायक इस्तीफ़ा दे रहे हैं उससे तो साफ है कि कमलनाथ सरकार को परेशानी हो सकती है।