देषी बीजों को संधारित करने लगा खरगोन का किसान 

खरगोन,  देषभर के कृषि वैज्ञानिक हमारे देषी किस्म की प्राचीन बीजों के लोप होने को लेकर चिंतित होने लगे है। इसका कारण हमारा प्राचीन बीज “जीओम“ किसानों के पास नहीं रह गए है। यदि ऐसा हुआ, तो किसी भी फसल की नई-नई वैरायटियां (किस्म) बनाने का कार्य रूक जाएगा। क्योंकि हमारे प्राचीन या देषी बीजों में ही वह षक्ति है, जिससे उन्नतषील किस्म बनाई जा सकती है। भारत सरकार ने इन स्थितियों को समझते हुए वर्ष 1976 में हरित क्रांति के बाद नेषनल ब्यूरो आॅफ प्लांट जेनेटिक्स एंड इंडियन रिसोर्सेस इंडियन की स्थापना की। देष में हरित क्रांति के बाद कई नई-नई हाई ब्रिड वैरायटियां सामने आई। इससे पूर्व किसान अपने पास मौजूद बीजों को ही उपजता रहा, लेकिन इस क्रांति ने अधिक उत्पादन ने लालच को बढ़ावा दिया, जिससे किसान उन्नत बीजों की और झूके और आज स्थिति यह है कि हमारे प्राचीन देषी बीज किसानों के पास नहीं बचें। 
       


खरगोन में बिस्टान के कृषक अविनाषसिंह दांगी ने भी 7 वर्ष पूर्व इन परिस्थितियों को समझते हुए पुराने देषी किस्म की तलाष षुरू कर दी थी। उनकी यह तलाष आज वाकई सहीं साबित हुई और वे आज एक दर्जन से अधिक देषी किस्म के बीज न सिर्फ खोजे, बल्कि उनकी खेती भी प्रारंभ की। अविनाष बताते है कि देषी बीजों के लिए वे हजारों किसानों से मिलें। कहीं किसी से 50 ग्राम तो किसी से 100 ग्राम बीज और किसी से तो मक्के के चार भुट्टे मिलें। अविनाष पिछले वर्षों की कोषिषों के बाद अब पर्याप्त बीज हो गए है। यह रोचक होगा कि देष की सबसे प्राचीन देषी जो आज विलुप्त की कगार पर है, उनके पास मौजूद है और इसकी फसल भी ले रहे है। इतना ही नहीं, अविनाष बंषी, खपली, पैगाम्बरी सोनामोती, कठियां, काली-बाली (ग्वाला) चंदोसी, यह सब गेहूं की देषी वैरायटी है, जिनकी वे खेती कर रहे है। अविनाष इस वर्ष देषी बीजों के साथ उत्सव मना रहे है। इनका उत्सव उनके खेत में गेहूं की देषी बीजों की खेती के साथ है। इस बार अविनाष भी बुवाई कर बेहद खुष है। इसके अलावा अविनाष पीला व हरे मूंग की खेती भी करती है। वहीं उनके पास काली अरहर, सात पाली ज्वार, बाजरा, काला चना, साठी मक्का की देषी किस्म भी है। 
जैविक खेती के साथ पषुपालन व मुर्गीपालन भी
   12वीं पास करने के बाद लगभग 25 वर्षों से खेती का कार्य कर हे अविनाष ने करीब 12 वर्ष पूर्व पारंपरिक खेती को छोड़कर जैविक खेती के साथ-साथ आधुनिक खेती को भी अपनाया है। आधुनिक खेती में उन्होंने पषुपालन और मुर्गीपालन का भी समावेष किया है, जिससे न सिर्फ उन्हें दुध व घी, बल्कि जमीन को जैविक बनाने के लिए गौमुख व गोबर अपने ही खेत में अपने ही मवेषियों से मिल जाता है। अविनाष के पास 14 गाय है, जिनमें सभी देषी नस्ल की है। वहीं मुर्गीपालन में सभी देषी मुर्गियां पालते है।