युवा कांग्रेस को कुणाल चौधरी जैसे जुझारू अध्यक्ष की तलाश 

उनकी आदिवासी अधिकार यात्रा से कांग्रेस की सत्ता की राह आसान हुई 
मध्यप्रदेश में युवा कांग्रेस के चुनावों कि सुगबुगाहट शुरू हो गई है। अब सत्ता में कांग्रेस है तो दावेदारी और खिंचतान का दौर भी चल पड़ा है। लेकिन बीच का वह 15 सालों का समय भी रहा जब युवा कांग्रेस का अध्यक्ष कांटों का ताज माना जाता था और इस दौर में कुणाल चौधरी जैसे युवाओं नेता भी उभरे जिन्होंने सत्तारूढ पार्टी के खिलाफ कड़े तेवर दिखाकर  न केवल अपनी सशक्त पहचान बनाई बल्कि कांग्रेस कि जमीन मजबूत कर सत्ता वापसी में भी महत्वपूर्ण योगदान  दिया। 



दरअसल साल 2017 में आदिवासी आंचल सैलाना से प्रारम्भ हुई युवक कांग्रेस की आदिवासी अधिकार यात्रा  बेहद प्रभावशाली रही थी और माना जाता है कि इसके प्रभावों और परिणामों ने मध्यप्रदेश की सियासत को बदल दिया।  राज्य में भाजपा की लगातार ताजपोशी के बीच अपनी खिसकती राजनीतिक जमीन को तलाशने की जदोजहद में जब दिग्गज कांग्रेसी संघर्ष कर रहे थे,उस दौरान युवक कांग्रेस के अध्यक्ष कुणाल चौधरी अपनी यात्राओं से लोगों को आकर्षित करने में कामयाब हो रहे थे। 24 मई 2017 को चिलचिलाती धूप में हजारों  आदिवासियों की भीड़ के बीच जब कुणाल चौधरी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को याद करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की तो जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट से उसका स्वागत किया गया। इसके बाद उन्होने इंदिरा गांधी के उस सपने की याद दिलाई जो इस इलाके की सभी पीढ़ियों को रोमांचित और प्रभावित  करता रहा है। गौरतलब है कि 1984 में प्रधानमंत्री रहते हुए वे उद्योगपतियों को लेकर मेघनगर आई थीं। मेघनगर के औद्योगिक क्षेत्र की नींव रखते हुए उन्होंने यहां के विकास का सपना सभी को दिखाया था। उनका संकल्प यह था कि औद्योगिक क्षेत्र का ही इतना विकास हो जाए कि यहां के आदिवासियों को रोजगार के लिए मेघनगर छोड़कर कहीं और नहीं जाना पड़े। इसके कुछ दिनों बाद ही इंदिरा गांधी कि  हत्या हो गई थी। 
आदिवासी अधिकार यात्रा का काफिला प्रदेश कि आदिवासी बाहुल्य करीब 45 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरा। युवक कांग्रेस के अध्यक्ष कुणाल चौधरी ने तत्कालीन शिवराज सरकार कि आदिवासियों को लेकर नीति पर खूब निशाना साधा। आदिवासी इलाकों के पिछड़ेपन,पलायन और बेरोजगारी जैसे मुद्दे उभारे गए। इस दौरान उन्हें कांग्रेस के जुझारू नेता जीतू पटवारी का भी खूब साथ मिला। मध्य प्रदेश में आदिवासी लगभग 23 फ़ीसदी हैं और इनके लिए 47 सीटें सुरक्षित हैं। इन सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा था। 2003 में परिसीमन से पहले आदिवासियों के लिए 41 सीटें रिज़र्व थीं और बीजेपी ने 37 सीटें जीती थीं।2008 में भी 47 में से 31 आदिवासी सीटें बीजेपी की झोली में गईं। जबकि 2013 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने आदिवासियों के लिए सुरक्षित 47 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 
लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने आदिवासी इलाकों में अप्रत्याशित  प्रदर्शन करते हुए सुरक्षित 47 विधानसभा सीटों में से 31 पर विजय हासिल कर न केवल भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाई बल्कि कांग्रेस की 15 साल बाद सत्ता मे वापसी भी हो गई। इन विधानसभा क्षेत्रों में युवक कांग्रेस की आदिवासी अधिकार यात्रा  का निर्णायक प्रभाव राजनीतिक विश्लेषकों ने भी स्वीकार किया।  जाहिर है इस समय कांग्रेस के सामने चुनौती होगी की वह कुणाल चौधरी जैसे किसी ऊर्जावान नेता के हाथों में युवा कांग्रेस की कमान सौंपे जो भोपाल और दिल्ली में रहने के बजाय जमीन पर कांग्रेस को मजबूत कर सके।